Wednesday, 20 April 2016


आज में आज़ाद हूँ..
सय्याद ने बहुत कोशिश की,
मेरे पंख कतरने की.. 
लेकिन मैंने भी हार ना मानी, 
ज़िद्द करने ठान ली..
बेशक लंबा इंतज़ार किया, 
जतन किये, नए पंख उगाये..
आज मैं आज़ाद हूँ, 
खुले आसमान में भरी नई उड़ान..
अब किसी में हिम्मत नही,
 जो कोई टोक दे, 
ऊचाईयां छूने से रोक ले।

Tuesday, 10 March 2015

ख़त्म हुआ #WomensDay..


चलो जी ख़त्म हुआ #WomensDay..
और शुरू हुआ बाकी 364 दिन का खेल
अब #MothersDay का इंतज़ार करेंगे।
चलो हम शराफत का नकाब उतार फैंकें
और फिर पुराने ढर्रे पर वापिस लौट आएं।
माँ बहन की गालियों से अपना दिन शुरू करें
सड़क पर चलती हर लड़की को छेड़ें।
आज दहेज के लिए फिर कोई बहु जलाएं
अपने घर की औरत को पैर की जूती बताएं।
बेटी को नैतिकता के सारे पाठ पढ़ायें
बेटे को आज़ादी दें, बेटियों पर बंदिश लगाएं।
लड़की की नंगी तस्वीरों से दीवार सज़ाएं
भोग की वस्तु समझें और देह व्यापर कराएं।
प्यार प्रीत का झांसा देकर उसे घर से भगाएं
प्रणय निवेदन न स्वीकारे तो तेजाब पिलायें।
थप्पड़ घूसे चप्पल के बल पर अधिपत्य जमायें
ना माने तो बलात्कार कर उसे सबक सिखाएं।
पुत्र ही मेरे वंश की बेल है, यह मानकर
आओ कन्या की भ्रूण में ही हत्या कराएं।
साल दर साल सिलसिला यूँही चलाते जायें
अगले हर 8 मार्च फिर महिला दिवस मनाएे।। 

Monday, 3 November 2014

बचपन..



सब कहते हैं ये नटखट बचपन
सपनो की रंगबिरंगी दुनिया है।

परियों की दंतकथाओं सा रोचक
शायद पंचतन्त्र सा ज्ञानवर्धक है।

काले बदलो का नमकीन पानी या
भीगी मिटटी की सौंधी खुशबु है।

साफ़ शीशे जैसी अपारदर्शी या
पिकासो के चित्र समान उलझा है।

हरी इमली सा खट्टा या फिर
कुरकुरे की तरह टेड़ा मेड़ा है।

हाथों से फिसलती हुई रेत या
हवा में तैरता हल्का नन्हा पंख है।

बंसी की मीठी धुन में मग्न या
कोयल की कुक सा मधुर है।

पहाड़ों की वादियों में गूंजता या
हरी घास का मखमली आसन है।

पंछी की मस्त उड़ान भरता या
मोर के फैले पंखों का नृत्य है।

नदिया का कलकल स्वर या
बहते झरने का निश्छल जल है।

हाथी की चाल की तरह मदमस्त
या शेर की शक्तिशाली दहाड़ है।

अभी यहाँ दिखाई देता है बचपन
पलक झपकते नज़रों से ओझल है।

Tuesday, 14 October 2014

शठे शाठयम समाचरेत.. 


जब सास बहु की लड़ाई में सास का पलड़ा भारी हो तो बहु अपना गुस्सा कहाँ उतारे? उसे भी तो अपने क्रोध और क्षोभ से मुक्ति चाहिए? इसलिए उसने भी एक उपाय किया। वो उठी और पड़ोसी के घर के बाहर अपने घर का कूड़ा फैंक आई। पड़ोसी ने शालीनता से कूड़ा उठाकर डस्टबिन में डाल दिया। सिलसिला काफी दिनों तक यूँही चला।
एक दिन पड़ोसी ने बहु को बुलाया प्यार से समझाया। कोई असर नहीं हुआ। चतुर, चालाक सास बहु ने मिलकर फ़ौरन दुसरे पड़ोसियों को इक्कट्ठा किया और उलटे बेचारे पड़ोसी पर परेशान करने का इलज़ाम लगा दिया।
महिलाओं(सास-बहु) की बात पर सबको सहानभूति हुई। अब बहु को ज्यादा शय मिली। हर आये दिन कूड़ा कचरा पड़ोसी के दरवाज़े पर फैंका जाने लगा। कभी कभी तो अन्दर आँगन तक फैंक दिया। पोछे का गन्दा पानी भी डालना आरंभ किया।
अब पड़ोसी ने भी सबक सिखाने की ठानी। उसने अपने घर के बाहर दरवाज़े पर एक कुत्ता लाकर बाँध दिया। कुत्ता सुबह शाम खूब भौंकता था। काटने को दौड़ता था। उसने सबके दिन का चैन और रात की नींद हराम कर दी।
कुछ गली के कुत्ते भी आने शुरू हुए और कूड़े के ढेर को मुंह में दबाकर बहु के घर पर फैलाकर आने लगे।
धीरे धीरे बदमाश कुत्ते सारे मोहल्ले में भौंकने और उधम मचाने लगे। हर जगह गन्दगी फ़ैलाने लगे। मुहल्ले के बच्चों का घर निकलना मुहाल कर दिया। बाहर से आने वालों में खौफ पैदा किया।
सास बहु की जोड़ी फिर पड़ोसियों के घर शिकायत करने पहुंची। लेकिन अब की बार उनकी बात किसी ने ना सुनी। उलटे फटकार लगायी। बहु से ढक्कन वाला कूड़ेदान खरीद कर गली मोहल्ले में सफाई रखने का आदेश दिया।
सास-बहु की लड़ाई में अब बहु का गुस्सा घर पर ही फूटने लगा। पड़ोसी का घर आंगन भी साफ़ रहने लगा।
पड़ोसी की समझदारी काम आई। इसी बीच उसने मुनिसिपेल्टी की गाड़ी बुलवाई और आवारा कुत्ते पकड्वाकर सबकी खूब वाह वाही पायी।
अपने कुत्ते का दरवाज़े के पास पक्का घर बनवा दिया। इम्पोर्टेड बिस्कुट और दूध से उसका कटोरा भर दिया। कुत्ता भी प्रस्सन, शांत रहने लगा। अन्य पडोसी भी खुश हुए। बच्चे खेलने-खिलने लगे। बहु जब भी बाहर निकले कुत्ता गुर्राए तो बहु घर में वापिस छिप जाये।
बहु सोचे अब किसको गुहार लगाऊँ? पड़ोसी संग कैसे रिश्ते बनाऊं? जब सास से परेशान हो जाऊं तो किसके पास जाकर मन बहलाऊँ??

👉 ऊपर लिखित वाकये को भारत पाकिस्तान सीमा विवाद से जोड़कर न देखें।
कृपया बहु में नवाज़ शरीफ या किसी भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री छवि न ढूंढें।
😀😀😀😀

Friday, 19 September 2014

रिश्तों का बदरंग रूप...

अपने आस पास, चारों ओर जो देखा,
पढ़े लिखों लोगों का एक मेला मिला,
खुद को माँ कहलाने वाली सास दिखी,
आज के युग में ऐसी इक नार मिली।

इक दिन अगर उसी माँ रूपी सास को लगे
कि उसका होनहार बेटा चाहे कुछ भी करे,
घर से बाहर जाकर वो कोई भी खेल खेले,
सब जायज़ है, उसकी हर गलती माफ़ है।

उस पर रोना धोना शिकायत करना बेकार है,
अपनी माँ के घर लौट जाना अफसोसनाक है,
ससुराल में रहकर पति के अत्याचार सहे,
रिश्ते सही करने का बहु ही सारा प्रयास करे।

बहु तो बस उसे अच्छे कपडे पहनकर रिझाये,
सब्र करे और गूंगी गुडिया बनकर बैठ जाए,
बेटा कही भी जाए लेकिन लौट के घर आये,
तो इससे ज्यादा बहु और कुछ ना चाहे।

पति के सामने वो लड़की घुटने टेके,
कोई सवाल पूछने की हिम्मत न करे,
मार खाकर, अपमान सहकर भी चुप रहे,
परन्तु घर छोड़कर जाने की कोशिश भी ना करे।

शादी की है, सात फेरे लिए हैं, ये याद रखे,
हर वचन को पूरा करने की जिम्मेदारी निभाए,
अपने कन्धों पर लेकर रिश्तों का भार ढोए,
बच्चे पैदा करे, चुपचाप अपनी शादी बचाए।

अपने अनजान ग़म मिटाने के लिए बेटा,
अगर थोडा सा नशा करे तो क्या पाप है?
बहु रानी, युवा पीढ़ी का ये नया तरीका है,
आजकल का यही फैशन और सलीका है।

दुनिया के सामने ढोंग रचे, प्रपंच करे,
अच्छे और सच्चे होने का सास नाटक करे,
बहु का हर कदम पर साथ देने का वादा करे,
लेकिन फिर बेटे के क्रियाकलापों पर पर्दा डाले।

सास यही समझाती ये पुरुषों का समाज है,
पति तेरा परमेश्वर वो तो आदम जात है,
प्यार करे या तिरस्कार करे उसका व्यवहार है,
मुझे गर्व है क्यूंकि ये मेरे ही दिए संस्कार हैं।

ऐसी औरत जात का बोलो क्या हाल हो?
जो धोखा देकर मासूम की ज़िन्दगी खराब करे,
बेटे की हर गलती जान,अनजान बने, फरेब करे,
आप बताएं उस सास के साथ कैसा सलूक हो??

Thursday, 11 September 2014

साम्राज्य की लालसा..


युद्ध विनाश की वो भट्टी है,
जिसमे सैनिक झोंके जाते हैं।
जहाँ हर संवेदना मरती है,
रोज मानवता हारती है।।

जीवन मृत्यु बन रह जाती है,
मृत्यु ही जीवन हो जाती है।
यहाँ स्वार्थ परम धर्म बनता है,
पराजय शेष रह जाती है।।

चारों ओर क्रंदन चीत्कार है,
भयभीत नहीं अवसाद है।
ये साम्राज्य की लालसा ही,
रक्त पिपासा का व्यापार है।।

सब प्रयास अधूरे रह जाते हैं,
कोई स्वपन ना पूरे हो पाते हैं।
घमंड जाने क्यूँ इतना गहरा है,
यहाँ खंड खंड प्रत्येक चेहरा है।।

नश्वर संसार में कुछ शाश्वत नहीं,
फिर भी प्रकृति खिलवाड़ सहती है।
अपनी दयनीय अवस्था देखकर भी,
अट्टहास करती नए युग में प्रवेश पाती है।।

पीढियां आती हैं, पीढियां जाती हैं,
सैनकों की भट्टियाँ जलती रहती है।
दानवता सदैव प्रचंड रूप लेकर,
सदियों यूँही हाहाकार मचाती है।।

Thursday, 14 August 2014

विभाजन की टीस..


स्वतंत्रता दिवस आते ही लोगों में देशभक्ति की भावना जोर मारने लगती है। जन मानस अंग्रेजों की गुलामी से मिली मुक्ति पर भाव विभोर हो जाता है। हर कोई मुश्किल से मिली आज़ादी के रंग में सराबोर हो जाता है।
लेकिन आज़ादी के रंग के साथ मिला हमें एक रंग और भी है जिसका ज़िक्र सिर्फ वही करते हैं जिनका इससे वास्ता है। ये रंग उन लोगों का दुःख है जिन्होंने गुलाल के रंग के साथ विभाजन के समय खून का रंग भी देखा है। अपना घर-बाहर खोया और कितने अपनों को अपने सामने मौत के मुंह में जाते भी देखा है।
15 अगस्त 1947 का वो दिन जब एक विराट देश दो टुकड़ों में बाँट दिया गया। अपनों को पराया कर दिया। घर परिवार बाँट दिया।
उस एक दिन में बदली थी ना जाने कितने लाखों लोगों की तक़दीर। देश बदल गया। घर पीछे छूट गया। अपने ही देश में लोग शरणार्थी हो गए। राजा से रंक बन गए। साहूकार जैसे लोग दूसरों पर आश्रित हो गए। एक एक दाने को तरस गए।
सालों लगे अपनी ज़िन्दगी को समेटने में। जवानी बीत गए। बचपन मानों सपनों में खो गया। परियों की कहानी सा हो गया। पैदा हुए थे जिस मिटटी में उसे छूने को भी तरस गए। अपने बिछड़े वतन की हवा में सांस लेनी भी कभी नसीब नहीं हुई।
थोडा सा समान समेट कर अपने घर से निकले थे जो इस उम्मीद पर के एक दिन अपने घर लौट जायेंगे, वापिस वही सम्मान पाएंगे। कभी उस मिटटी की खुशबु भी ना सूंघ सके, उस ज़िन्दगी की एक झलक भी न देख सके।
अपनी दरो-दीवार को तरसते, मन में टीस लिए जहाँ जगह मिली, वहीँ बस गए। नए आशियाने बनाये। रोज़गार ढूंढें। उसी मिटटी के होकर रह गए। बरसों जीवन संघर्ष में बीत गया। उस पीढ़ी ने मानो सुख को कल्पना में ही महसूस किया।
एक नयी दुनिया में अपनी पहचान बनायीं.. फिर खो गए। 😢
#Parents #Independence #Partition #Refugees

Saturday, 10 May 2014

MothersDay


माँ को भी तो मेरी याद आती होगी,
अपनी दुनियां से ही शायद पर माँ,
रोज छिपकर मुझे देखती तो होगी,
वहीं से मेरे आंसू भी पोंछती होगी।
मुद्दतें हो गयी हैं माँ तुझसे जुदा हुए,
मीठी आवाज़ सुने, तेरी सूरत देखे,
फिर भी हर पल जाने क्यूँ लगता है,
जैसे तू यहीं कहीं आस-पास है माँ।

Sunday, 2 March 2014

Hunger और Hungry..

Hungry तो यहाँ सारे हैं..
कोई power hungry
तो कोई news hungry
किसी को कुर्सी का hunger
तो कोई वोट hungry
किसी को name hunger
तो कोई fame hungry
किसी को पेट का hunger
तो कोई रिश्वत hungry
किसी को शॉपिंग का hunger
तो कोई सैर सपाटा hungry
किसी को प्यार का hunger
तो कोई रिश्तों का hungry
किसी ज्ञान का hunger
तो कोई विज्ञान का hungry
किसी को नौकरी का hunger
तो कोई marks hungry
किसी को followers का hunger
तो कोई चमचागिरी का hungry..



चुनाव की सुगबुगाहट..


शहर में आज बड़ी ही खलबली है,
हर गली-कूचे में झंडियाँ लगी हैं।

टूटी सड़कों की लीपापोती हुई है,
ऊँची इमारते कुछ धुली धुली है।

हैंडपंप की हड़ताल खुल गयी है,
नलकों में पानी की बौछार हुई है।

सरकारी फाइलों की धूल हटी है,
बाबुओं के शरीर में चुस्ती आई है।

शिलान्यासों का दौर चल पड़ा है,
नयी स्कीमों की बाढ़ आन पड़ी है।

टेंट वाले की कुर्सियों की बिक्री हैं,
पान सिगरेट की दुकान में रौनक है।

आज भूखे भिखारी को हलवे के संग,
8-10 पूरी और दो भाजी भी मिली है।

सरपंच की मूछ में नई ताव दिखी है,
एक बार फिर उनकी पूछ जो हुई है।

गाँव भर ने 4 दिन पीटर स्कॉच पी है,
लम्पट छोकरों ने हरी गड्डियां छूई हैं।

पड़ोसी गाँव में सिलाई मशीन पहुंची है,
ट्रंक भर कम्बल,रजाई,मिक्सी आई हैं।

रैलियों के नाम पे नोटों की बरसात हुई है,
गाँव ने मेले जैसी रौनक फिर से देखी है।

नेता के कुर्ते पे बढ़िया कलफ़ चढ़ी है,
जैकेट भी तो काफी साफ सुथरी है।

आयाराम गयाराम की खूब चांदी हुई है,
पार्टियों को टिकटें बेचने की जो छूट है।

एक दूसरे को गालियाँ देने की दौड़ है,
भाषा कितनी अभद्र की मची होड़ है।

झूठे वायदों की मानों झड़ी लगी हुई है,
जनता को मुर्ख बनाने की रेस चल रही है।

लगता है ये चुनाव की सुगबुगाहट है,
तभी तो नेता ने जनता की सुध ली है।

Sunday, 2 February 2014

कुदरत की सुन्दरता..

यूँही आज अचानक
जो मेरी आँख खुली,
आसमान को एकटक
मैं बस निहारती रही,
सुरमई सूरज के पीछे
बादलों की ओट मिली,
सूरज और बादलों की
आंख मिचोली दिखी,
हवा नन्ही पत्तियों संग
सरगोशियाँ करती मिली,
चिड़ियाँ चहचहाती हुई
उड गई  दूसरी गली,
पेड़ पौधे थे दमके हुए
कलियाँ खिली खिली,
रंग बिरंगी तितलियाँ
भंवरों की हंसी ठिठोली,
कुदरत की सुन्दरता
आज से पहले देखने को
क्यूँ मुझे नहीं मिली।

Friday, 24 January 2014

जीवन का अंतिम सत्य..


अंतिम प्रहर,
अनजान सफ़र,
सुनसान डगर,
अंधकार गहन,
अनगिनत प्रश्न,
वेदना प्रबल,
श्वास विफल,
चेतना शिथिल,
मृत्यु निकट। 

Monday, 20 January 2014

धरने पर बैठे मुख्यमंत्री का दर्द...

दिल्ली के CM यानि हमारे Sirji का दर्द-
मौसम ने साजिश की है। बारिश भी कांग्रेस/बीजेपी के साथ मिली हुई है। बड़े समुन्द्रों का बहुत पानी पिया हुआ है। बारिश के करप्शन को जनता के सामने लायेगे। ये सब मिलकर जितना मर्ज़ी षड्यंत्र कर लें, बारिश/सर्दी करा दें। लेकिन हमारा उत्साह कम नहीं होगा। हम जनता के अधिकार के लिए बारिश/सर्दी से भी लड़ेंगे। खांसी की परवाह किये बिना मुफ्लर पहन के डटे रहेंगे।
ये जो आरएसएस के लोग हैं, इन्होंने बारिश करवाने के लिए आसमान से बड़ी मीटिंग्स की हैं। ये कम्युनल बारिश है ताकि माइनॉरिटीज हमारे धरने में न आ सकें।
दिल्ली की पुलिस पहले तो चंदा उगराती है फिर जनता को धमकती है। और फिर पैसा शिंदे जी को मिलता है। वही पैसा समुन्दरों को शिन्देजी पहुंचाते हैं। ताकि जब भी कोई अनशन/ धरना हो, उसे विफल करो।
ये सब मिलकर बारिश में भी बड़े बड़े घरों में रहते हैं। बिना छाते और रेनकोट के बाहर तक नहीं निकलते। ये जनता की खांसी बुखार को क्या समझेंगे?
मोदी का सारा तंत्र इसके पीछे लगा है। अमित शाह को जिम्मेदारी दी है कि बारिश करवाते रहो जिससे मेरी खांसी बढती रहे और मैं स्टील के ग्लास से पानी न पी सकूँ।
ये पापी लोग और भ्रष्ट पार्टियाँ कितना भी जोर लगा लें। हमें हराना चाहते हैं तो कोई भी कोशिश कर लें। हम इन्हें मुंह तोड़ जवाब देंगे।

Friday, 3 January 2014

रिश्तों का कडवा सच..


सफ़र मुझे तय करना था,
आसानी से तय कर लिया,
जितनी सीढीयां चढ़नी थी,
चढ़ कर वहां मैं पहुँच गया,
अब तू मुझसे अवकाश ले,
तेरा संग मुझे क्या करना है?

बड़ा हो गया हूँ मैं बच्चा नहीं,
तेरे साथ की अब वजह नहीं,
हर बार लौट आऊँ,क्यूँ जरुरी है?
स्वार्थ सिद्ध हुए,रास्ते अलग हुए,
साथ की चाह फिर क्यूँ अधूरी है?

तेरे कंधे पहले से मजबूत नहीं,
बूढ़े चेहरे पर हज़ार झुरियां हैं,
तुझ संग विचारों का मेल नहीं,
बहुत ख्वाब,मुझे पूरे करने हैं,
तेरे संग से कुछ हासिल नहीं,
तेरा साथ मुझे क्या करना है?

कौन हूँ,इससे अंतर क्या दिखता?
जैसा समझो कोई फर्क नहीं पड़ता,
रंग,रूप,भाषा, भिन्न हुए तो क्या?
सदियों से हर युग में मिलता हूँ,
हाड़ मांस का पुतला,नाम इंसान है। 

Thursday, 17 October 2013

बेसाख्ता..

तेरे घर में जो मिलता था
कभी, वो मेरा प्यार  था,
आज तू है, तेरा घर भी है
लेकिन मेरा प्यार कहाँ है?

आँख का आंसू भी
कमाल कर गया,
मेरे आईने को और
धुंधला कर गया।

हर इक आंसू मेरा जो
इस आँख से बहता है,
तु न देखे तो पानी का
बस इक कतरा सा है।

काश कोई तो समझे
कि चुप रहने वालों
की जुबां भी होती है,
उनके सीने में दिल है
जिसमें दर्द भी होता है।

जिनके प्यार की
बरसात में
भीगे थे कभी,
उनके चेहरे
को भी देखे
सदियाँ बीत गयी हैं।

जब से तू बेपरवाह
हुआ है मेरे रिश्ते से,
अपना घर भी अब
मुझे मकान लगता है।

खंडहर को देख कर जो
इमारत का पता लगाते हो,
ज़रा मेरे दिल में झांक कर
टूटे रिश्तों को ही समेट लो।

वो जो सपना हमने
मिल कर देखा था
थोडा तेरा पर बहुत
सारा मेरा भी था।

Sunday, 13 October 2013

रावण उवाच..


हर बार मैं जलता हूँ,
हर बार मैं बचता हूँ।

सदियों का क़र्ज़ है ये,
जल्दी ना चुकता होगा।

अयोध्या में तू जन्मा,
बनवास स्वीकार किया।

न तुझ से बैर था मेरा,
न ही कोई पहचान थी।

फिर भी बहन का अपमान,
ये था मेरे क्रोध का आह्वान।

हनुमान भेज लंका जलवाई,
रामसेतु बनाकर की चढ़ाई।

लंका आने का साहस किया,
विभीषण मेरे विरुद्ध किया।

कष्ट तुझे विरह का देना था,
बदला मुझे बहन का लेना था।

सीता अगर भार्या थी तेरी,
श्रुप्नखा भी बहिन थी मेरी।

हर युग में मुझसे युद्ध किया,
हर बार तूने मेरा वध किया।

हर बार मुझसे अनजान हुआ,
पर आज मैं तेरा मेहमान हुआ।

कुछ कोशिश तेरी रही अधूरी,
कुछ कोशिश न मैंने की पूरी।

और कुछ बस इस तरह से,
मैं जिंदा रहा हूँ सदियों से ।

Sunday, 6 October 2013

बचपन की रामलीला...


याद है मुझे अपने बचपन की वह रामलीला,
जिसे देखने का जोश कभी न होता था ढीला।

इतनी भीड़भाड़ मगर हर बार देखनी होती थी,
राम, लक्ष्मण और सीता के त्याग की  गाथा।

घर से कुर्सी ले जाना वहां बैठ मूंगफलियां खाना,
खूब हंसना, मस्ती करना और रात भर जागना ।

राम और सीता को देखकर दोनों हाथ जोड़ना,
हनुमान के आने पर तालियाँ बजा शोर करना।

रावण की भयानक हंसी कितना हमें डराती थी,
सीता की व्यथा तो मुझे हर बार रुला जाती थी।

केकैयी को देखने से मन में नफरत हो जाती थी,
मंथरा को हर बार हमारी एक गाली तो पड़ती थी।

राम का बाण चला राक्षस रावण संग युद्ध करना,
अंत में रावण को मार अपनी सीता को घर लाना।

भारत मिलाप देख कर मन में नए सपने संजोना,
मिलजुल के रहने का पाठ हमेशा चाव से सीखना।

रामलीला का हर एक संवाद कंठस्थ होता था,
फिर भी हर बार देख भरपूर आनंद मिलता था।

बचपन की क्या कहें, उसकी हर बात निराली थी,
तभी हमने बचपन की हर याद मन में बसा ली थी।

आज सोचो तो वह सब एक सपना सा लगता है,
वही बचपन की रामलीला देखने को मन करता है।

Saturday, 3 August 2013

मेरा मन तेरे प्यार का दर्पण... 


मेरा मन तेरे प्यार का दर्पण
प्यार मेरा तुझ पर हो अर्पण।

मुझसे तू जितना प्यार करेगा
प्रिय ये दर्पण उतना चमकेगा।

प्रियतम रंग रूप मेरा निखरेगा
संग-संग जीवन तेरा संवारेगा।

तेरे मेरे प्यार में आ गई जो दूरी
दर्पण में हमें छवि दिखे अधूरी।

दोनों मिलके कितना भी चमकाएं
प्रिय तस्वीर साफ़ न देख पाएंगे।

प्रियवर बना मत प्यार को मजबूरी
क्यूँ तस्वीर हमारी कभी हो धुंधली।

ऐसा हो अपना प्यार और समर्पण
सदा निखरा रहे इस मन का दर्पण।


Thursday, 1 August 2013

कहीं तो कोई सीमा होगी..


खुशियाँ मिले पर नाख़ुश,
खुशियों का स्त्रोत्र ढूढते हो,

ज़िन्दगी मिले तो जीने का
रहस्य खोजने में जुट जाते हो,

प्यार पाकर खोने के डर से
मुट्ठी में ज़ोर से जकड लेते हो,

रिश्तो को पाकर भी असंतुष्ट
नए रिश्ते जोड़ने चल देते हो,

ज्ञान मिले तो बांटने से ज्यादा
अपने पास छुपाना चाहते हो,

विरासत में मिली धरोहर को
ना संजो अय्याशी करते हो,

परिवार से दूर जाकर उड़ने को
एक नया आकाश खोजते हो,

और पाने की लालसा में जो है
उसे भी अनदेखा करते हो,

मुट्ठी में दबी रेत सा धीरे-धीरे
सब हाथ से छूट जाने देते हो,

मूक बने खुद से सब कुछ
दूर होता देखते जाते हो,

कुछ ऐसा है इस जीवन में
जिसे पाकर संतोष रखते हो?

अब कहीं तो कोई सीमा होगी
जिसे जानते और मानते हो?

दिल का अफसाना..


इस दिल के सौ-सौ अफसाने
कुछ नए बाकि किस्से पुराने।

                 क्या करें सुना के हाल अपना
                 जो टूट गया, था मेरा सपना।

दिल को कितना भी बहलायें
उलटी सीधी बातों में उलझायें।

                गैरों का हो मुझसे बने बैगाना
                इसकी सोच का उल्टा पैमाना।

परायों की बात सुन होता खुश
मुझसे दूर हो कर देता है दुःख।

               बड़ा चालाक चलता है अपनी चाल
               न पूछो इस दिल का क्या है हाल।



देश की दुर्दशा..


मन्नू  खामोश हैं,

सरकार बेहोश है,

नेतागण मदहोश हैं,

अपराधी बेख़ौफ़ है,

जनता में आक्रोश है,

कुछ उनका भी दोष है,

गलत चुनाव का आरोप है।

नन्ही चिड़िया का गरूर.. 



चिड़िया उड़ती पंख फैलाती,
पंखों को देख खूब इतराती ।

जानती पंख उसकी पहचान,
पंखों से है उसका आसमान।

सुबह-सवेरे खूब चहचहाती,
आसमान देख कर इठलाती।

पंखों ने बनाया जो उसे रानी,
ऱोज लिखती इक नयी कहानी।

नन्ही चिड़िया को आया गरूर,
उड़ते-उड़ते जा पहुंची बड़ी दूर।

भूल बैठी छोटी सी ये हकीकत,
अकेले ज़िन्दगी तो बने मुसीबत।

चाहे वो कितनी दूर उड़ती जाये,
बेशक हर बंधन को तोड़ गिराए।

कितने भी ऊँचे अपने पंख फैलाये,
इस डाल,उस डाल छलांग लगाये।

घर में मिलना है चिड़िया को दाना,
कही जाये लौट घोसले में है आना।

मन की बातें ...

                 (१)
काश कोई तो ऐसी दुकान होती,
जहाँ चेहरे की मुस्कान मिलती।
कुछ ज़िन्दगी का सकून बिकता,
महंगा ही सही कुछ तो दिखता।
मैं जाती थोड़ा सा खरीद लाती,
हंसी से ही अपना मन बहलाती।

            (२)
आज भी याद है मुझे
वो बचपन की बात,
माँ के नीले दुपट्टे में
लगी गाँठ का राज।
भूल जाती थी अक्सर
जब वो कोई बात,
लगा कर गांठ याद
रखती थी हर राज़।

                    (३)
राम निकला,रावण दहन किया।
अगले साल की प्रतीक्षा न करो।
रोज इस राम को बाहर निकालो।
और ऐसे ही रावण का दहन करो।
हर दिन दशहरा दिवाली का जश्न करो।

                  (४)
हर चमकती चीज़
सोना तो नहीं होती।
ज़िन्दगी जैसी दिखती है
वैसी हरगिज़ नहीं होती।
उनसे पूछो कैसी है ज़िन्दगी
जो दुनिया में अकेले हैं।
साथ रहने भर से तो
ज़िन्दगी हसीं नहीं होती।

                 (५)  
पहली बारिश की नन्ही बूँदें,
मिटटी की सोंधी-सोंधी खुशबु
और नहाये हुए उजले से पत्ते
सब बचपन की याद दिलाते हैं
मन को भावविभोर कर जाते हैं ।

               (६)
ज़िन्दगी बड़ी दुखदायी है,
और मौत तो हरजाई है,
दोनों का साथ अस्थायी है।
जीवन की कडवी सच्चाई है।

                (७)
आप शायरी करे
क्यूंकि दिल टूटा हो,
ये जरुरी तो नहीं ।
जिंदगी यूँही आपको
शायर बना देती है,
शायरी सिखा देती है।

                    (८)
ज़िन्दगी तेरे अहसास
अलग हो सकते हैं।
लोगो के जज्बात भी
अलग हो सकते हैं।
तुझको जीने की सजा,
सबको एकसी ही मिलती है।

                 (९)
सब कुछ यहीं धरा का धरा रह गया,
मरने के बाद साथ कुछ भी न गया।
याद रहेगी दुनिया भर में थू-थू हुई,
जीवन भर की कालिख मुंह पर पुती।

                   (10)  
समय का पहिया तो निरंतर चलता है,
सुख-दुःख दोनों जीवन चक्र में मिलते हैं।
अक्सर सुख का पहिया बड़ी तेज़ी से,
और दुःख का पहिया धीरे-धीरे घूमता है।

                   (11)
अक्सर हमने देखा कि लोग बहक जाते हैं,
लोगों की सोच के पैमाने तक पलट जाते हैं।
हर किसी को अगर शक की नज़र से देखो,
विश्वास करने के सारे बहाने बदल जाते है।

                    (12)
"राजनीति" भावनाओ पर नहीं चलती।
खरी सौदेबाजी इसकी असली ताकत है।
नोटों की हरी गड्डियां इसकी खुराक है।
समाज में ज़हर फैलाना ख़ास चरित्र है।


                (13)
मिलो हमें एक ऐसी जगह,
जहाँ सब रास्ते खो जाते हैं।
साथ रहो कुछ इस तरह कि,
सफ़र कभी ख़त्म न हो पाए।

                 (14)
माँ ही पहला स्कूल है 
और माँ ही पहली गुरु
माँ जब बोलना सिखाये
तभी हो ज़िन्दगी शुरू।
संस्कार दे हर बच्चे को 
इंसान बनाये ये गुरु
माँ के चरणों में शीश 
झुकाकर करो दिन शुरू।          
                 (15)
जो मुझे पता था वो धर्म अब नहीं है।
भगवान की हर कल्पना धुंधली सी है।
जैसा इंसान दिखाया था कभी माँ ने।
अब तो वैसा कहीं मिलता ही नहीं है।

                (16)
पतझड़ में पत्ते उतर गए
डाली सूनी सी रह गयी
नया मौसम, फल-फूल
और पत्ते लेकर आयेगा
मेरी बगिया महकाएगा।
इक बार फिर से कोयल
अपनी मीठी कूक सुनाएगी।

              (17)
हर बार मैं जलता हूँ,
हर बार मैं बचता हूँ।
कुछ कोशिश तेरी अधूरी,
कुछ कोशिश न मेरी पूरी।
बस कुछ इस तरह से,
मैं सदियों से जिंदा हूँ।

              (18)
जो सपना हमने मिल कर देखा था,
थोडा तेरा बहुत सारा मेरा भी था।
ख्वाब बना जिसे पलकों पे सजाया,
वही मेरी नींदें उड़ा कर चला गया ।
तेरा सपना मेरी नींद ख़राब कर गया,
इश्क इस कदर मुझे बर्बाद कर गया।

              (19)
कितने करीब थी वो दिल के मेरे,
धडकनों मेरी, उसकी आवाज़ थी।
जब भी वो मेरे नज़दीक आती थी,
उसकी सांस में मेरी खुशबु होती थी।

           (20)
दिल के टूटने की
कोई आवाज़ नहीं होती।
इक आंसू टपकता है
और आह निकलती है।
कुछ ख्याब टूटते है
ज़िन्दगी बदल जाती है।
वो धुंधला सा आइना
अब साफ़ सा मिलता है।
एक चेहरा दिखता है
वही हकीकत होता है।

           (21)
नफरतों की दीवार में भी
तो कुछ मिलावट होगी।
चलो साथ मिलकर इसे
तोड़ने की साजिश करें।

           (22)
दो सुकून पल की
बेदर्द तलाश में।
मेरी रात गुज़र गयी
तेरे इक ख्वाब से।
दो पल का आराम
कितना पड़ा भारी,
वो आये भी थे और
हमें ढूंढ के चले गए।

         (23)
यूँ ही कट गया
ज़िन्दगी का सफ़र
बस चलते चलते।
कोई जाना पहचाना
रास्ता नहीं मिला
ये अलग बात है।

        (24)
मेरी ख़ामोशी में जरुर
कुछ बात रही होगी,
मेरी आवाज़ सुनने
की चाह में
उसने उम्र गुज़ार दी।
मेरी ख़ामोशी में भी
मेरे प्यार की
मीठी सी आवाज़ है,
सुन सके तो सुन
बिना लफ्जों के
ये प्यार का इज़हार है।

           (25)
ज़िन्दगी की पहेलियाँ
हम सुलझाते रह गए।
बस कुछ इस तरह से
हम जीते जी मर गए।।
कभी नजदीकियां है
तो हैं कभी दूरियां।
हर किसी रिश्ते की
अपनी-अपनी मजबूरियां।।        

           (26)
तेरे हर फरेब ने कितनी
तकलीफ दी है मुझे,
तेरे वजूद से ही अब
नफरत हो गयी है मुझे।
रिशतों में वफादारी
क्यों कीमती है इतनी,
हर अहसास की हमसे
अब वो कीमत मांगता है।        


            (27)
कभी जो आईना देख कर इतराते थे,
आज अपनी धुंधली झुरियां मिटाते हैं।
आईने में जो ख़ूबसूरत चेहरा रोज दिखे,
उसके होंठों पे हंसी बिखेर,खुशनुमा बनाओ।

              (28)
ज़िन्दगी की हकीकतों ने
कुछ इस कदर बदल दिया
हर सच का झूट दिखा कर
मुझसे से मैं को ही छीन लिया।
किसी चाँद की ख्वाहिश
तो कभी न की थी मैंने,
जमीन पे कुछ तारे बिखेरो
बस ऐसी तमन्ना थी मेरी।

            (29)
जीना कितना मुश्किल फिर भी
सब कैसे भी जीये जाते हैं,
मरना इतना आसान फिर भी
हम हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।
ज़िन्दगी को जी लिया हमने
क्या यही सच्चाई कम है?
वर्ना तो हर रोज यहाँ मिलता
कोई नया ही गम है।

             (30)
आप जिनके बेहद
करीब होते हैं,
वो पास होकर भी
मीलों दूर होते हैं।

लोग रिश्ते बना
तो लेते है,
बस निभाने ही
भूल जाते हैं।

           (31)
यूँ तो हर बरस ही दीवाली आती है,
मिटटी के दीयों की याद दिलाती है।
बस इस बार ये दिवाली अलग होगी,
घर में चायनिज़ लड़ियाँ जो लगी होंगी।

            (32)
कांच के टुकड़े को धूप में रखना,
कागज़ जला कर आग लगाना,
खुद को बड़ा जादूगर बताना,
बस यही खेलते हम बड़े हुए हैं।

            (33)
कभी पानी,कभी रंग गुलाल,
कभी शोर,कभी धुएँ की बात,
हर बात पे इतनी फ़िक्र?
फिर आज क्यूँ नहीं आया जी,
आपको बेचारे बकरे का ख्याल?

            (34)
खंडहर को देख,
इमारत का पता लगाते हो,
ज़रा दिल में झांक,
टूटे रिश्तों को ही समेट लो।

         (35)
दिल की गली सूनी और
प्यार का मोहल्ला खाली है।
उस शख्स ने अपनी
अलग ही दुनिया बसा डाली है।

          (36)
हमने ज़िन्दगी से आज
मन की कही,
खूब शिकायत की,
ज़िन्दगी बोली
 अब बस करो,
कुछ तो नया कहो।

           (37)
शह्तूत के पेड़ पर
रस्सी का झुला बनाते थे,
बचपन बस यूँ ही हम
गली मोहल्ले में खेल के बिताते थे।

प्यार हर दिल में पले..

रोज़ मिलें अपना ऐसा कोई वादा तो नहीं,
ज़िन्दगी भर साथ निभाएंगे दावा तो नहीं।

जो सफ़र साथ मिलके कट जाये वो भला,
यहाँ कब किसे कुछ भी मुक्कमल है मिला।

जो भी शिकवा गिला हो उसे यहीं मिटाना,
जितना संग चल सको उतना साथ निभाना।

ज़िन्दगी का क्या भरोसा कब क्या हो जाये,
आजतक जो अपना था कल पराया हो जाये।

दिल का हर रिश्ता जो बना बस वो करीब रहे,
प्यार की बात हो, हर दिल में सिर्फ प्यार पले।



Sunday, 28 July 2013

आज नहीं तो कभी नहीं


अभी भी नहीं तो फिर कब

आप नहीं तो और हो कौन

सुख आपके दुःख भुगते कौन

देश नहीं तो किसके लिए

बोलना नहीं मौन हो क्यों

कष्ट हमारे निवारण किसका

यहाँ नहीं तो और जाएँ कहाँ

लड़ाई आपकी परिणाम किसे

व्यथा तो है दुर्दशा किसकी

चिंता समय की बेबस कौन

नींद की चाह सोये कोई कैसे

खुली आंख पर सपने किसके

द्वन्द मन का तो युद्ध कहाँ

बदलाव चाहिए बदले कैसे

खुद का युद्ध लडेगा कौन

हिम्मत आपकी साथ सबका

अब परिवर्तन रोकेगा कौन

नया सवेरा ला अंधकार मिटा

ये प्रयास आपका करेगा कौन?? 

Monday, 22 July 2013

नारी का प्रेम और त्याग..

नारी के पति प्रेम प्यार और
त्याग की अजब गाथा है।
राम की भक्ति में चूर
शबरी का अनोखा प्रेम,
गांधारी का पति का साथ देना
आँख पे पट्टी बांधना,
सावित्री का पति के प्राण बचाने को
यमराज से मिलना,
सीता का महलों का आराम छोड़ कर
वन में साथ जाना,
उर्मिला का पति बिन 14 साल
अकेले ही जीवन काटना,
सब भारतीय संस्कृति का परिचायक है,
अदभुत है।

Thursday, 18 July 2013

तू तो मौत का सामन है..


जीवन तेरा अपमान है
तू  मौत का सामान है

नियति में मरना लिखा है
क्यूंकि तू जन्मा इंसान है

कभी खाके, कभी भूख से
कभी जागकर,कभी सोकर

कभी बीमारी और रोग से
कभी प्रकृति के प्रकोप से

कभी ज्ञान के सागर में
कभी अज्ञानता में डूब के

कभी धर्म के आडंबर से
कभी अधर्म के समुंदर मे

कभी प्रभु के तीसरे नेत्र से
कभी इंसान रूपी दैत्य से

कभी मुलायम बिछौनों पे
कभी ठन्डे मुर्दा से फर्श पे

कभी  अमीरी के घमंड से
कभी घोर गरीबी के दंड से

कभी यौवन के उन्माद से
कभी मदिर  के प्रसाद से

कभी दुश्मनों के  वार से
कभी परिवार के प्रतिकार से

कभी समाज के भय से
कभी खुद के निर्णय से

कभी ऊपर की लालसा से
कभी नीचे गिर के धडाम से

कभी अपनों के हाथों से
कभी परायों के पापों से

कभी ऊँचे उड़ते आकाश में
कभी गहरे डूबते पाताल में

कभी भोजन के कुपोषण से
कभी सामंतवादी शोषण से

कभी बाबाओं के पाखण्ड से
कभी अपने बचपन उद्दण्ड से

कभी प्रियतम के प्यार से
कभी दुष्ट के बलात्कार से

कभी शादी के आयोजन से
कभी दहेज़  के  प्रलोभन से

कभी संस्कारों के  दोष से
कभी जातिवालो के क्रोध से

कभी सरकार की नीति से
कभी नेता की राजनीति से

कभी टैक्स की बेचारगी से
कभी न्याय की लाचारी से

जनम लेते भविष्य तो तय है
इन्सान बन जीने का भय है।

मृत्यु तेरी बिलकुल निश्चित है
यही जन्म लेने का प्राश्चित है।

Monday, 15 July 2013

प्रभु का नाम जपो..


ईश्वर का बुलावा आए
इक दिन सबने जाना है।

जब अंत समय है आता
कोई साथ न निभाता है।

खाली हाथ आये थे,
खाली हाथ जाना है।

साथ कुछ नहीं जाता
सब यहीं छूट जाता है।

मोहमाया को छोड़कर
भक्ति में मन लगाना है।

प्रभु का नाम जपते-जपते
वैकुण्ठ में स्थान पाना है।

अगला जन्म मिले ना मिले
पहले यही जनम सुधारना है।

अपने कर्म करके मिटटी में
वापिस लीन हो  जाना है।

Sunday, 14 July 2013

अनजान से लोग..


जिस दुनिया में हम रहते, है कुछ अधूरी,
कब कहाँ खो जाये किसी को खबर नहीं।

सब कुछ ख़त्म कर डाला बाकि क्या बचा,
हर मन में पाप,लालच लूट का कारण बना।

खुद बनाई दुनिया अपना बस नहीं चलता,
हर किसी को दूसरा अपना दुश्मन दिखता।

अंत आता देखकर भी सब बने हैं अनजान,
अपनी धरती पर हर शख्स हो गया मेहमान।

अपनी दुनिया तो अब हमसे संभल न रही,
नयी दुनिया खोजने में पूरी ताकत झोंक दी।

खुद के हाथों सब कुछ हमने दिया बिगाड़,
मिली थी जो जन्नत मिल सबने दी उजाड़।

अपनी ही धरती के हम कैसे शत्रु हो गए हैं,
स्वर्ग पाने की चाहत में इसे नर्क कर गए हैं।


Sunday, 30 June 2013

नेता मेरी नज़र से ..


राजनीती का खेल है लोग मिमियाते रहें और भेड़िये शेर की खाल ओढ देश पर राज करते रहें। भारत में लोकतंत्र का मतलब है नेता, उसकी जेब और उसका पेट। वैसे अगर देखें तो इस देश में सभी राजनेता व राजनैतिक दल लगभग एक जैसे है, सत्ता में बैठे हो तो ठग और सत्ता से बाहर बेखबर नज़र आते है। कहने को तो हर नेता देश की सेवा का दम भरता है परन्तु वास्तविकता में अपने परिवार की सेवा ही उसका प्रथम कर्तव्य है।
'नेता जब तक जिंदा है हमेशा रहे गरीब, नेता मरे तो हो जाये शहीद।' 
नेता वो है जो गद्धी पर बैठने के लिए किसी हद्द तक जा सकता है। अपने से बड़े नेता के जूते साफ़ कर सकता है। दफ्तर में झाड़ू तक लगा सकता है। शर्म और बेहयाई की सीमा पार करके देश की बजाय व्यक्ति विशेष के लिए जान भी देने को तैयार हो जाये। किसी पर बन्दूक उठाने में अपनी शान समझते हैं। परिवारवाद अब देश के हर नेता का मानो धर्म है।
शर्म, दया और नेता विपरीत शब्द हैं। मौकापरस्ती और लालच नेता के पर्याय हैं। जेब नोटों से भरे हैं, पेट कभी नहीं भरते फिर भी गरीब के गरीब रहते है, ऐसे हमारे देश के नेता हैं। देश पर विपत्ति आये तो अब क्या करना है? आपदा से तो निपटना है । आपदा के बाद सरकार में बैठे ज्ञानी नेता लोग नया टैक्स लगाकर हम पर मानो अहसान चढ़ाते है और फिर राहत कोष का झोला फैला हमसे ही भीख मांगते है। स्विस बैंकों में इतना कला धन जमा करने वाला देश अचानक से गरीब हो जाता है? फ़ोर्ब्स की लिस्ट में टॉप पे आने वाले उद्योग्पती भी ना जाने कहाँ खो जाते हैं।
पार्टी कोई भी हो हर नेता यहाँ लालची है। बस कोई थोडा कम बाकि सब नेता लालच की हर सीमा को पार कर जाते हैं। नेता अगर सुधर जाये और जनता के हित का सोचे तो वो नेता काहे का? लालच का दूसरा नाम ही नेता है।नीतियाँ इनकी, लालच इनका, लूट-खसोट इनकी और खामियाजा बेचारा आम आदमी अपनी जान गंवाकर चूका रहा है।
नेता जादू करने में उस्ताद हैं। उनके जादू की छड़ी घूमते ही खाली बैंक नोटों से भर जाते हैं, उनकी प्रॉपर्टी दिन दूनी रात चौगुनी बढती है। सरकारे संवेदनहीन हो गयी हैं उनकी संवेदना कहीं खो सी गयी हैं। सरकारें बदलने से सिस्टम तक बदलता नहीं है और नेता तो हमेशा एक समान रहता है। ऐसे में आम आदमी का जीवन क्या ख़ाक बदलेगा? वो तो सिर्फ एक मोहरा है, कभी इससे पिटता है तो कभी उससे। कुछ राज नेताओं की हालत देख कर समझ आता है कि कभी-कभी सालों का संघर्ष थोड़ी सी नासमझी से व्यर्थ जाता है । सरकार में बैठे नेताओं को खबर हो या नहीं हो क्या फर्क पड़ता है? बेचारे आम इन्सान ने तो हर हाल में मरना है। नेता और  उनकी पार्टी के लिए तो जनता इंसान नहीं सिर्फ निर्जीव शरीर भर है।
दे दिया ब्यान, हो गया आपका काम, चलिए नेता जी साहब अब माथे से पसीना पोछिये और घर जाकर चैन की नींद सो जाईये । सुबह उठकर फिर किसी को बलि का बकरा बनाना है। लोगो ने अब पैसे को खुदा बना दिया है। देश की आधी आबादी को भर पेट भोजन हीं मिलता है क्यूंकि शासन हमेशा खुद का पेट भरता है, फिर भी हमारा नेता तो ऐसा है कि उसका पेट खाली का खाली रहता है।
जो लोग समाज को बदलने और जनता के हितो के लड़ने के लिए उठे थे आज अपने हितों और बैंक लॉकारों को बदलने में जुटे बैठे हैं। इन्ही नेताओं ने नैतिकता का पतन किया है। इन्ही की वजह से अब हर चीज़ व्यापार का सामान हो गयी है। हालत ये हो गयी है कि अब हम हर किसी को शक की नज़र से देखते हैं। हर बात पर शक करते हैं। जब तक कोई नेता न मरे तब तक कहीं भी धुंआ नहीं उठता और कोई रोष भी नहीं दिखाता । नेता का जो काम है उसने वही तो करना है। वोट और वोटर(आम जनता नहीं) उसकी लाइफ-लाइन हैं। इसलिए उसने साम, दाम, दंड और भेद सब अपनाना है। लोगो को जात-पात और धर्म के नाम पर उकसाना और लड़ाना है। जनता नेताओं के इशारों पे घूमती है, इसीलिए तो वो उन्हें घूमाते हैं। देश के लगभग हर नेता के अन्दर अभी भी सामंती खून है।
जब तक नेता खुद को जनता का सेवक नहीं समझेगा, अपनी पार्टी का गुलाम बन के रहेगा, यकीन मानिये वो सिर्फ अपनी जेब भरेगा देश में कुछ भी नहीं बदलेगा।अपने से ऊपर देश के हित की भावना जब तक नेता के मन में नहीं होगी जनता को सिर्फ धोखा मिलेगा।
शिक्षा से ज्यादा बनावटी चकाचोंद और आसान ज़िन्दगी जीने का लालच और पश्चिमी सभ्यता के अंधाधुन्ध अनुसरण का असर है कि युवाओ को लगता है खिलाडी या अभिनेता की बजाय वो नेता बनके देश लूट पायेगे । अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए धन जोड़ पाएंगे। खादी पहनो, नेता बनो और खुद का कल्याण करो। सिर्फ राजनीती में ही रिटायरमेंट का कोई रूल नहीं है और न ही किसी नेता में कुर्सी छोड़ने की इच्छा शक्ति है। यही सन्देश सब तक जा रहा है । इसीलिए तो आज युवा का राजनीती और नेताओं से मोह भंग हो गया है।

Tuesday, 18 June 2013

पडोसी बिना जग सूना ...

अक्सर आपने अपने किसी ना किसी रिश्तेदार या पडोसी को यह कहते तो सुना ही होगा कि "भाई साहब आप ने लड़की के लिए लड़का देखना अब तक शुरू ही नहीं किया?" या फिर "बहनजी लड़के को कोई लड़की पसंद आई की नहीं?" "भई शादियाँ तो हमारे ज़माने में हुआ करती थी, माँ-बाप ने जिससे कहा बस कर ली और ज़िन्दगी भर साथ निभाया। लेकिन आज कल तो गर्ल फ्रेंड/बॉय फ्रेंड का चक्कर ही नहीं ख़तम होता तो शादियाँ क्या ख़ाक होंगी? और हो भी गयी तो टिकती ही कहाँ हैं?"
अब ऐसे रिश्तेदार या पडोसी तो सवाल पूछ-पूछ कर आपको बेहोश ही कर देते हैं। मानो सारी दुनिया की चिंता सिर्फ इनको ही है जिसकी वज़ह से ये दुबले-पतले हो रहे हैं और आप तो जी हाथ पे हाथ रखकर बैठे हुए हैं या फिर मजे से स्नूकर खेल रहे हैं। अपने से ज्यादा चिंता तो इन्हें आपके घर की रहती है। इनकी रातों की नींद भी शायद इसी कारण उड़ी रहती है। आपके घर की हर खबर इन्हें होनी चाहिए और शाह जी की फ्री सलाह आपको मान लेनी चाहिए।
चलिए किसी तरह शादी भी हो गयी तो भी इनको कहाँ चैन आने वाला है। मिले नहीं की अगला सवाल तोप के गोल्रे की तरह दाग डालेंगे कि "दो से तीन कब हो रहे हो?" और अगर कही आपने कह दिया कि "अभी हमारी उम्र ही क्या है, पहला बच्चा २ साल बाद होगा" तो बस इनके मुंह का तो जायका ही बिगड़ जाता है। हर बार जब आपसे मिलेंगे तो आपको घूर के देखेंगे या फिर कोई वन-लाइनर ही सुना जायेंगे।
दो साल बाद आपसे इनका वही सवाल होगा "अब तो बहुत मज़े कर लिए। कब तक छड़े बनकर घूमोगे? थोडा परिवार भी बढाओ, खानदान का वारिस भी तो लाओ।" जैसे की आपके खानदान के इकलौते ठेकेदार यही ज़नाब/मोहतरमा हैं। घूमफिर कर इनकी हर बात वहीँ आ पहुंचती है। परिवार-नियोजन के पक्के दुश्मन होंते हैं ऐसे लोग।
लेकिन मुश्किल तो यह है कि इनकी कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती है। आपके यहाँ बच्चा आया नहीं कि इन्होने टपक पड़ना है और फिर वही कहानी-किस्से शुरू "लड़का हुआ है, चलो जी वंश का चिराग आया" लड़की हुई तो "ओह! कोई बात नहीं अगली बार लड़का हो जायेगा।" यानि के अभी पहला वाला न पाला, न संभाला और इनको दूसरे बच्चे की चिंता हो गयी। अब तो जरुर इनका ४-५ किलो वज़न घट जाना है। इनका कथा बांचने का कार्यक्रम तो २४/७ चलता रहता है।
दूसरा बच्चा होगा तो इनका आगमन भी होना जरुरी है। शगुन १०० रूपये देंगे लेकिन आपका लाखों का कीमती समय अपने प्रवचन से चाट जायेंगे। खाना खायेंगे सो अलग। बच्चे के स्कूल की चिंता, लड़की हुई तो लड़के की चिंता, एक के बाद एक और नयी चिंता.. इनका जीवन तो आपकी ही चिंता में चिता पर ही लेटा रहता है। आपके बच्चों के भविष्य का सारा ग्राफ इनका खींचा होता है। डॉक्टर या इंजिनियर सब इनकी मर्ज़ी से बनना चाहिए। वर्ना तो समझो ग़दर हो जायेगा। इनके तानों से आपका दिन शुरू होगा और जली-कटी बातों से रात ढलेगी।
किसकी बेटी किसके साथ मोबाइल पे बात करती है, अगर आपको जानना है तो यही जेम्स बांड के अवतार आपको बताएँगे। कौन कहाँ गया, आया और किसके साथ भागा उसके लिए न्यूज़पेपर किसे चाहिए? इनकी कृपा से हरदम आपका मनोरंजन होता है।
ये पडोसी/रिश्तेदार वैसे देखे तो आपकी डल्ल और बोरिंग ज़िन्दगी को रंगीन बनाते हैं। मसाले का सही मात्रा में इस्तेमाल करना भी यही महान लोग हमें सिखाते है।

Thursday, 30 May 2013

पैसे की तृष्णा..

रोज सोचती हूँ क्या करना है इतना पैसा?
क्या राजा बन  अहंकार हमें जाताना है??
                       
क्यूँ अंधे पैसे की होड़ में आगे बढ़ते जाना है?
क्या रोज हमें सोने से बनी रोटियाँ खाना है??

क्यूँ पैसे की तृष्णा मन की हवस बन रही है?
क्यूँ जीवन में हरदम इतनी कलह् बढ़ रही है??

पैसे को भगवान् समझ कर लोग टूट पड़े हैं।
जीवन की आपाधापी में रिश्ते पीछे छूट रहे हैं।।

पैसे से कभी कोई सुख खरीद सका है मानव?
पैसे ने खड़े किर दिये हैं रोज नित नए दानव।।
                       
पैसा एक दुशशक्ति है, न संगी है न साथी है।
इसके मोहपाश में बंधकर चल जाती लाठी है।।

पैसे का मोह न कर ऐ बन्दे चंचल कहाँ टिकता है।
इस जेब से उस जेब, दिन भर पड़ा भटकता है ।।

पैसा भी आज तक क्या किसी का सगा हुआ है?
राजा हो या रंक इसने तो सबको ठगा हुआ है।।

कभी कही ना जायेगा क्या ऐसा कोई दावा है?
तेरा बनकर साथ रहेगा इसने किया वादा है??

Wednesday, 29 May 2013

अजब गजब पप्पू ....

टीवी पर हमले की खबर सुनी,
डर के मारे पप्पू का बुरा हाल है।
 
छुपे जाकर वो किस पाताळ में,
यही सोच कर हो रहा बेहाल है।

नक्सालिओं ने जो किया था हमला,
दिखता उसमे जोगी का ही कमाल है।
 
जोगी के जाते बाकि सबकी जान गयी,
इसमें जरुर कोई ना कोई गोलमाल है।

खूब हैरान हुआ पप्पू उसके रहते हुए,
कांग्रेस में आया कोई नया चालबाज़ है।  
कहा हे दीदी! भरे पड़े स्विस बैंक हमारे,
हमने तो खूब बना लिया मोटामाल है ।

जीजा ने हड़पकर मीलों लम्बी जमीन 
खुद को बना लिया बड़ा जमींदार है।  
चारों ओर छाई भूखमरी, गरीबी, महंगाई 
हमें क्या करना, हम हो गए मालामाल है।

जिनको करना है करें वो भारत निर्माण,
लेकिन मुझे तो जाना अपने ननिहाल है।
 
जब तक न जायेंगे अपनी नानी के घर,
केजरीवाल सी मेरी भी भूख-हड़ताल है।

भई, जो भी हो पप्पू की अजब-गजब बातें 
KRK,राखी सावंत से भी ज्यादा कमाल है।

Saturday, 11 May 2013

भगवान् क्यों नहीं आते ? 


चारों ओर हो रहा इतना त्राहिमाम-त्राहिमाम,

फिर भी क्यों नहीं हमें कहीं दिखते भगवान्?

अब हर कोई हमसे पूछे बस यही एक सवाल,

ये सब देख क्यों नहीं आते हमें बचाने भगवान्?

हमने थोडा सोचा अपने अंदर बाहर जो खोजा,

तो भई,कुछ इस तरह का मिला हमें जवाब कि-

हमने सचिन को बना डाला क्रिकेट का भगवान,

डॉक्टर को जीवनरक्षा करने वाला माना भगवान्,

अध्यापक को शिक्षा देने वाला कह दिया भगवान्,

नेता ने बागडोर थाम खुद समझ लिया भगवान्,

अपराधी बैखौफ होकर माने खुद को भगवान,

साधू जनता को मुर्ख बनाकर बन बैठे भगवान,

पुलिस ताकतवर बनकर हुई समाज की भगवान,

पति समझे खुद को महान, बना पत्नी का भगवान,

जब धरती पर पहले से ही हैं इतने सारे भगवान,

फिर क्यों हमें बचाने आयें असली वाले भगवान्?? 

मदर्स डे...


नहीं भूलती तुम्हारी कही बातें,
आसमान के नीचे बितायी रातें।
                           
माँ तब जीवन बड़ा सरल था,
तुम्हारे प्यार में कोई न छल था।

तुम्हारा ज्ञान की बातें बताना,
हमारा समझकर नासमझ बन जाना।
                                 
सब्जी देख नाक भों सिकोड़ना,
फिर भूख लगने पर खा भी लेना।

कभी चिल्लाना कभी बात न मानना,
हर बात पे रूठना, तुरंत मान जाना। 
                                 
अब तो रूठे हुए सालों बीत गए हैं,
कौन करे मनुहार कान तरस गए हैं।

बीते दिन ऐसे हमसे दूर हो गए हैं,
कहानी किस्सों से महसूस हो रहे है।
                                 
कुछ ऐसा हो जाये कहीं से कोई आये,
जा कर तुम्हे उस देश से लेकर आये। 

एक बार प्यारा चेहरा देख सकूँ,
माँ हाथ लगाकर मैं तुम्हे छू सकूँ। 
                               
काश ऐसा इक बार हो जाये,
कैसे भी बेटी माँ का स्पर्श पाए। 

जानूं कि उस देश का पता नहीं,
जा पाऊं ऐसा कोई रास्ता नहीं। 
                                 
ये मन माँ को हरपल ढूंढता है,
व्याकुलता में आसमान ताकता है।

कभी किसी सितारे में दिख जाओ,
या फिर चंद्रमा में ही नज़र आओ। 
                                 
माँ बिना तुम्हारे ये जीवन सूना है,
तुम्हारी बेटी का हर दुःख दुगना है।

हर जन्म तुम्हे ही माँ के रूप में पाऊं,
बेटी बन अपना जीवन सफल बनाऊं।
                                 
यही कामना, प्रार्थना मैं दोहराऊं,
सदैव तुम्हारी ही बेटी कहलाऊं।। 




Thursday, 7 March 2013


महिला दिवस..

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जहाँ नारी का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं।

महिलाएं समाज का वो आधा हिस्सा है जो बाकी आधे को पूरा करता है। इसीलिए महिलाओं की शिक्षा, सुख दुःख और दुर्दशा का हमारे समाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। महिलाएं सदियों से समाज को बदलने का प्रयत्न कर रही है घर में माँस्कूल में अध्यापिकाअस्पताल में डॉक्टर और वकील बनकर अपने कर्तव्य का पालन करती है। हर क्षेत्र में पुरुष के साथ मिलकर अपना योगदान देती है।अपने परिवार के लिए हर नदीपर्वत और रास्ते में आती हर एक बाधा को पार कर के अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है। जरुरत पड़े तो देश की सेवा के लिए भी हर मोर्चे पर डट जाती है। चाहे पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर काम करती है, लेकिन अपने बच्चो की गुरु बनकर उन्हें ज्ञान और संस्कार का अमूल्य खज़ाना भी देती है। अन्नपूर्णा बनकर परिवार का भरण-पोषण करती है। महिला अगर पलने को झूलाती है तो समय आने पर सत्ता को भी हिला सकती है।
स्वतंत्रता संग्राम में भी महिलाओं का योगदान सराहनीय है।अब तो महिलाएं सोशल मीडिया पर भी गयी हैं।राजनीती में तो महिलाओं की पैंठ अच्छी है। एक साथ कई हिस्सों में बंटकर भी हमेशा निडरता सेडटी रहती है। कभी भी हिम्मत नहीं हारती है हर कार्य को उतनी ही कुशलता से करती हैजितनी की उससे आशा की जाती है।फिर भी हर समय हंसती मुस्कुराती ही दिखती है। निस्वार्थ प्रेम और सेवा में तो नारी का कोई सानी ही नहीं है।
इक नारी से दुखी रहे दूसरी नारी बेचारी,
फिर भी नारी बिन अधूरी ये दुनिया सारी।
मर्द हो या होसाथ दे या ना दे, उसे तो बदलाव के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। घर हो या बाहर पुरुषों के अत्याचार का सामना करना पड़ता है। अपमान भी सहना पड़ता है। घर पर भी और बाहर जाकर भी अपनी सुरक्षा का जिम्मा भी खुद ही लेना पड़ता है। नारी को कमजोर मानने वाले पुरुष दरअसल अपनी कमजोरी को नकारते है। पुरुष प्रधान समाज से आप कोई अलग उम्मीद रख भी कैसे सकते हैं ?

Monday, 4 March 2013

Princess Diaries...

So long farewell.. its time to say goodbye,

I am not alive.. so mustn't I die?
Dead live forever.. those live need to die.

I am a princess.. I am no ordinary,
That's the life.. that's my destiny.

I live in a golden cage.. they call it my home,
I have them all.. but I am one still feel alone.

Love they all claim.. I know, me they hate,
O dear sun early I rise.. yet always so late.

Star in my eyes.. I look up to the sky,
I find a dark land.. how hard should I try.

From my little window.. I see children play,
In my cage sitting.. I shall only pray.

The strangest paths.. I have to follow alone,
Not even God find me.. worthy of a clone.

Bird I see as my friend.. They want freedom,
My Friends want wings.. will fly any random.

Their chirping is my voice.. sweet melody or sad song,
Go my friend find your home.. I can't even come along.

Mine is another world.. set myself free to explore,
I shall meet new angels.. swim to the deepest core.

Time has come to Rest in peace.. O' little princess,
Visit secret gardens.. many more magical places to see.

O' little princess.. O' little princess.. O' little princess!!







Monday, 25 February 2013

तंत्र भ्रष्ट.. राजा मस्त.. प्रजा त्रस्त.. फिर भी हम हैं लोकतंत्र। 


आज सुबह न्यूज़ पेपर उठाया तो दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित का ब्यान पढ़ा कि 'अगर बिल नहीं भर सकते हो तो बिजली कम खर्च करो।' "कूलर मत चलाओ, पंखे से काम लो।" हां जी!! आप के लिए ये सब बातें कहना कितना आसान है। आप खुद तो AC कमरों में बैठे रहते हैं और नए फरमान जारी करते है। आपने कौन से बिल भरने होते हैं? सरकार आपके सारे खर्चे उठती है।
तो जरा भगवान् से भी तो कहिये कि दिल्ली पर मेहरबान रहे और कभी गर्मी न आने दे। क्यूंकि हमारी बात तो ना आप सुनती हैं और ना ही भगवान्। आपको दिल्लीवालों के पैसे तो खूब दिखते हैं, लेकिन उन खर्चों का क्या जो महंगाई ने बड़ा दिए हैं?  
आपने सत्ता में आते ही तो बिजली के फर्र फर्र दौड़ने वाले मीटर लगा दिए थे। अब बिल तो ज्यादा आना ही था। वैसे भी यहाँ आम आदमी की सुनता ही कौन है?
अभी कुछ दिन पहले यही महिला मुख्यमंत्री दिल्ली की लड़कियों को सुरक्षित रहना है तो रात में घर से बाहर ना निकलो का उपदेश दे रही थी। 
हैरानी होती है, जिस महिला को दिल्ली की जनता ने चुन कर भेजा सत्ता पर बिठाया, आज वह सिर्फ नसीहत देती है। पर आपके लिए कुछ करने को तैयार नहीं है। किसके भरोसे रहे बेचारी ये आम जनता?
हाल ही में इन्हें टीवी पर सोनिया गाँधी के हाथ चुमते देखा गया था। हाँ भाई, आप तो उनके ही हाथ चूमेंगी। क्यूंकि जिस जनता ने इतने वोट दिए, आपको जिताया और गद्धी पर बैठाया, उसे तो आप लात मरती हैं और अपमानजनक बातें कहती है। बिना गलती का ही कसूरवार ठहरा देती हैं। 
शायद हर नेता को लगता है कि वो तो अजर और अमर है। पांच साल मानों पांच जनम है, कि दुबारा जनता के बीच न जाना पड़ेगा। मगर देवी जी ये तो आप जैसों की खुशफहमी है। आना तो जनता के पास ही पड़ेगा फिर से हाथ जोड़कर। फिर इतना अहंकार किसलिए है? 
आज सत्ता तो जैसे आप नेताओं के घर की जागीर ही बन गयी है। राष्ट्रमंडल खेलों के चलते जो लूट खसोट हुई, उससे कौन अपरिचित है? लेकिन किसी नेता को कब पकड़ा जा सकता है? आप नेतागण तो हर कानून से परे हैं।
इन्ही की दया से कभी भी पानी के दाम बढ़ जाते है। बिजली कम्पनिओं की मनमानी भी इन्ही के दम पर है। किसी दिन हवा में सांस लेना भी मुश्किल होगा, कहेंगी की आप पहले टैक्स दो और अगर नहीं दे सकते तो सांस मत लो। 
अब हम अपने ही घर में दुत्कारे जाते है, गाहे-बगाहे अपमानित किये और चिढाये जाते है। आम जनता किस तरह से अपना गुजारा करती है ? कैसे अपने बच्चों को पढ़ाती है, ये नेता लोग क्या जाने ?
आज तो स्थिति ये आ गयी है कि सिविक सुविधाओं के लिए भी गालियां सुनने को मिलती है और अधिक दाम भी हमें ही चुकाने पड़ते हैं।

Sunday, 24 February 2013

Reading Is Passion.. 


Books are the windows through which the soul looks out. ~ Henry Ward Beecher  

Reading books makes man a better person. It encourages us to have a clear and complete view about things around us. We can find our best companion in books that can never leave our hand unless we decide to leave its hand. A home without books is like a body without soul. Books are the most accessible and wisest of counselors. Reading is a Passion for those who have the hunger for knowledge. Without reading there can be no learning and wisdom. Reading is fun, it makes us to escape from our problems and get solace in books. Reading is a good habit. Journey of reading begins with childhood fairy tales. Later school books, no matter how boring and torturous they might look but they teach us the most.

Show me a family of readers, and I will show you the people who move the world. ~Napoleon Bonaparte

Napoleon Bonaparte probably did not see my family - My mother along with her five children, the six of us reading books. Our passion for reading was such that we would all have books in our hands, be it reading or resting. I had so much passion for reading that I could read just anything. I was not aware of the concept of good or bad reading. I used to read all types of books - mythology, romance, film magazine, comics or even the books known as crap reading.

But then came the Satellite Television in India and life was never the same again. Reading was soon forgotten as we were swept by the emerging 24x7 TV and slowly, but steadily, increasing number of channels. By the time we realized, reading has already taken the back seat.

PS: 
A home without books is like a body without soul. (<-- Mythological myth. .)

Tuesday, 19 February 2013

याद रखने को बस यही काफी है.. 

टिमटिमाते तारों की इक कहानी हैं
प्यार में डूबी ज़िन्दगी की रवानी हैं।

जब भी तेरा मन बदलने लगता है
आसमान का रंग फीका पड़ता है।

तेरी हंसी इतने मोती बिखेरती है,  
चुनते चुनते मेरा दिन ढल जाता है।


समुन्दर की लहरें इशारा करती हैं,
प्यार की कश्ती ऊपर नीचे होती है।

देखो घडी की सुइयां रुकने न पाए,
उतार चड़ाव में रिश्ते ठहर न जायें।

साथ बैठ के ली चाय की चुस्कियां
याद रखने को बस यही काफी है


Saturday, 16 February 2013

बचपन की सुनहरी यादें....


नटखट बचपन, 
भोला बचपन 
कितना मस्ती भरा था 
अपना बचपन।  

जितना स्वछंद,
उतना ही निश्छल,
हर पल याद आता बचपन। 

अपने घर में फलों की 
भरी होती थी टोकरी,
फिर भी पडोसी के 
बगीचे से चुरा अमरुद खाना।

भरी दोपहर में बिना 
शोर मचाये घर से निकलना,
और अपनी सखियों के संग 
मस्ती करना और खेलना।

कितना लुभावना लगता था 
अपनी बहनों का साथ, 
माँ की मीठी झिडकियां खाना 
और खिलखिला के हँसना।

शहतूत तोडना कच्चे पक्के 
सब बिना धोये ही खा जाना,
पेड़ पर पींग डालना 
अपनी बारी न आने पर चिल्लाना।

सखियों के साथ घंटों बैठकर 
यहाँ वहां की बातें करना,
छोटी बड़ी बात पर झगड़ना 
फिर एक दूजे को मनाना।

माँ का अलमारी में 
अखबार के नीचे नोट रखना,
आज भी अपनी कीमत का
 एहसास दिलाता हैं।

समय बीत जाता है,
उम्र बढती जाती है,
बचपन की सुनहरी यादें, 
छोटी बड़ी बातें,
बस यही रह जाती हैं, 
बेहद याद आती हैं।