मन की बातें ...
(१)
काश कोई तो ऐसी दुकान होती,
जहाँ चेहरे की मुस्कान मिलती।
कुछ ज़िन्दगी का सकून बिकता,
महंगा ही सही कुछ तो दिखता।
मैं जाती थोड़ा सा खरीद लाती,
हंसी से ही अपना मन बहलाती।
(२)
आज भी याद है मुझे
वो बचपन की बात,
माँ के नीले दुपट्टे में
लगी गाँठ का राज।
भूल जाती थी अक्सर
जब वो कोई बात,
लगा कर गांठ याद
रखती थी हर राज़।
(३)
राम निकला,रावण दहन किया।
अगले साल की प्रतीक्षा न करो।
रोज इस राम को बाहर निकालो।
और ऐसे ही रावण का दहन करो।
हर दिन दशहरा दिवाली का जश्न करो।
(४)
हर चमकती चीज़
सोना तो नहीं होती।
ज़िन्दगी जैसी दिखती है
वैसी हरगिज़ नहीं होती।
उनसे पूछो कैसी है ज़िन्दगी
जो दुनिया में अकेले हैं।
साथ रहने भर से तो
ज़िन्दगी हसीं नहीं होती।
(५)
पहली बारिश की नन्ही बूँदें,
मिटटी की सोंधी-सोंधी खुशबु
और नहाये हुए उजले से पत्ते
सब बचपन की याद दिलाते हैं
मन को भावविभोर कर जाते हैं ।
(६)
ज़िन्दगी बड़ी दुखदायी है,
और मौत तो हरजाई है,
दोनों का साथ अस्थायी है।
जीवन की कडवी सच्चाई है।
(७)
आप शायरी करे
क्यूंकि दिल टूटा हो,
ये जरुरी तो नहीं ।
जिंदगी यूँही आपको
शायर बना देती है,
शायरी सिखा देती है।
(८)
ज़िन्दगी तेरे अहसास
अलग हो सकते हैं।
लोगो के जज्बात भी
अलग हो सकते हैं।
तुझको जीने की सजा,
सबको एकसी ही मिलती है।
(९)
सब कुछ यहीं धरा का धरा रह गया,
मरने के बाद साथ कुछ भी न गया।
याद रहेगी दुनिया भर में थू-थू हुई,
जीवन भर की कालिख मुंह पर पुती।
(10)
समय का पहिया तो निरंतर चलता है,
सुख-दुःख दोनों जीवन चक्र में मिलते हैं।
अक्सर सुख का पहिया बड़ी तेज़ी से,
और दुःख का पहिया धीरे-धीरे घूमता है।
(11)
अक्सर हमने देखा कि लोग बहक जाते हैं,
लोगों की सोच के पैमाने तक पलट जाते हैं।
हर किसी को अगर शक की नज़र से देखो,
विश्वास करने के सारे बहाने बदल जाते है।
(12)
"राजनीति" भावनाओ पर नहीं चलती।
खरी सौदेबाजी इसकी असली ताकत है।
नोटों की हरी गड्डियां इसकी खुराक है।
समाज में ज़हर फैलाना ख़ास चरित्र है।
(13)
मिलो हमें एक ऐसी जगह,
जहाँ सब रास्ते खो जाते हैं।
साथ रहो कुछ इस तरह कि,
सफ़र कभी ख़त्म न हो पाए।
(14)
माँ ही पहला स्कूल है
और माँ ही पहली गुरु
माँ जब बोलना सिखाये
तभी हो ज़िन्दगी शुरू।
संस्कार दे हर बच्चे को
इंसान बनाये ये गुरु
माँ के चरणों में शीश
झुकाकर करो दिन शुरू।
(15)
जो मुझे पता था वो धर्म अब नहीं है।
भगवान की हर कल्पना धुंधली सी है।
जैसा इंसान दिखाया था कभी माँ ने।
अब तो वैसा कहीं मिलता ही नहीं है।
(16)
पतझड़ में पत्ते उतर गए
डाली सूनी सी रह गयी
नया मौसम, फल-फूल
और पत्ते लेकर आयेगा
मेरी बगिया महकाएगा।
इक बार फिर से कोयल
अपनी मीठी कूक सुनाएगी।
(17)
हर बार मैं जलता हूँ,
हर बार मैं बचता हूँ।
कुछ कोशिश तेरी अधूरी,
कुछ कोशिश न मेरी पूरी।
बस कुछ इस तरह से,
मैं सदियों से जिंदा हूँ।
(18)
जो सपना हमने मिल कर देखा था,
थोडा तेरा बहुत सारा मेरा भी था।
ख्वाब बना जिसे पलकों पे सजाया,
वही मेरी नींदें उड़ा कर चला गया ।
तेरा सपना मेरी नींद ख़राब कर गया,
इश्क इस कदर मुझे बर्बाद कर गया।
(19)
कितने करीब थी वो दिल के मेरे,
धडकनों मेरी, उसकी आवाज़ थी।
जब भी वो मेरे नज़दीक आती थी,
उसकी सांस में मेरी खुशबु होती थी।
(20)
दिल के टूटने की
कोई आवाज़ नहीं होती।
इक आंसू टपकता है
और आह निकलती है।
कुछ ख्याब टूटते है
ज़िन्दगी बदल जाती है।
वो धुंधला सा आइना
अब साफ़ सा मिलता है।
एक चेहरा दिखता है
वही हकीकत होता है।
(21)
नफरतों की दीवार में भी
तो कुछ मिलावट होगी।
चलो साथ मिलकर इसे
तोड़ने की साजिश करें।
(22)
दो सुकून पल की
बेदर्द तलाश में।
मेरी रात गुज़र गयी
तेरे इक ख्वाब से।
दो पल का आराम
कितना पड़ा भारी,
वो आये भी थे और
हमें ढूंढ के चले गए।
(23)
यूँ ही कट गया
ज़िन्दगी का सफ़र
बस चलते चलते।
कोई जाना पहचाना
रास्ता नहीं मिला
ये अलग बात है।
(24)
मेरी ख़ामोशी में जरुर
कुछ बात रही होगी,
मेरी आवाज़ सुनने
की चाह में
उसने उम्र गुज़ार दी।
मेरी ख़ामोशी में भी
मेरे प्यार की
मीठी सी आवाज़ है,
सुन सके तो सुन
बिना लफ्जों के
ये प्यार का इज़हार है।
(25)
ज़िन्दगी की पहेलियाँ
हम सुलझाते रह गए।
बस कुछ इस तरह से
हम जीते जी मर गए।।
कभी नजदीकियां है
तो हैं कभी दूरियां।
हर किसी रिश्ते की
अपनी-अपनी मजबूरियां।।
(26)
तेरे हर फरेब ने कितनी
तकलीफ दी है मुझे,
तेरे वजूद से ही अब
नफरत हो गयी है मुझे।
रिशतों में वफादारी
क्यों कीमती है इतनी,
हर अहसास की हमसे
अब वो कीमत मांगता है।
(27)
कभी जो आईना देख कर इतराते थे,
आज अपनी धुंधली झुरियां मिटाते हैं।
आईने में जो ख़ूबसूरत चेहरा रोज दिखे,
उसके होंठों पे हंसी बिखेर,खुशनुमा बनाओ।
(28)
ज़िन्दगी की हकीकतों ने
कुछ इस कदर बदल दिया
हर सच का झूट दिखा कर
मुझसे से मैं को ही छीन लिया।
किसी चाँद की ख्वाहिश
तो कभी न की थी मैंने,
जमीन पे कुछ तारे बिखेरो
बस ऐसी तमन्ना थी मेरी।
(29)
जीना कितना मुश्किल फिर भी
सब कैसे भी जीये जाते हैं,
मरना इतना आसान फिर भी
हम हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।
ज़िन्दगी को जी लिया हमने
क्या यही सच्चाई कम है?
वर्ना तो हर रोज यहाँ मिलता
कोई नया ही गम है।
(30)
आप जिनके बेहद
करीब होते हैं,
वो पास होकर भी
मीलों दूर होते हैं।
लोग रिश्ते बना
तो लेते है,
बस निभाने ही
भूल जाते हैं।
(31)
यूँ तो हर बरस ही दीवाली आती है,
मिटटी के दीयों की याद दिलाती है।
बस इस बार ये दिवाली अलग होगी,
घर में चायनिज़ लड़ियाँ जो लगी होंगी।
(32)
कांच के टुकड़े को धूप में रखना,
कागज़ जला कर आग लगाना,
खुद को बड़ा जादूगर बताना,
बस यही खेलते हम बड़े हुए हैं।
(33)
कभी पानी,कभी रंग गुलाल,
कभी शोर,कभी धुएँ की बात,
हर बात पे इतनी फ़िक्र?
फिर आज क्यूँ नहीं आया जी,
आपको बेचारे बकरे का ख्याल?
(34)
खंडहर को देख,
इमारत का पता लगाते हो,
ज़रा दिल में झांक,
टूटे रिश्तों को ही समेट लो।
(35)
दिल की गली सूनी और
प्यार का मोहल्ला खाली है।
उस शख्स ने अपनी
अलग ही दुनिया बसा डाली है।
(36)
हमने ज़िन्दगी से आज
मन की कही,
खूब शिकायत की,
ज़िन्दगी बोली
अब बस करो,
कुछ तो नया कहो।
(37)
शह्तूत के पेड़ पर
रस्सी का झुला बनाते थे,
बचपन बस यूँ ही हम
गली मोहल्ले में खेल के बिताते थे।