नन्ही चिड़िया का गरूर..
चिड़िया उड़ती पंख फैलाती,
पंखों को देख खूब इतराती ।
जानती पंख उसकी पहचान,
पंखों से है उसका आसमान।
सुबह-सवेरे खूब चहचहाती,
आसमान देख कर इठलाती।
पंखों ने बनाया जो उसे रानी,
ऱोज लिखती इक नयी कहानी।
नन्ही चिड़िया को आया गरूर,
उड़ते-उड़ते जा पहुंची बड़ी दूर।
भूल बैठी छोटी सी ये हकीकत,
अकेले ज़िन्दगी तो बने मुसीबत।
चाहे वो कितनी दूर उड़ती जाये,
बेशक हर बंधन को तोड़ गिराए।
कितने भी ऊँचे अपने पंख फैलाये,
इस डाल,उस डाल छलांग लगाये।
घर में मिलना है चिड़िया को दाना,
कही जाये लौट घोसले में है आना।
No comments:
Post a Comment