Thursday, 1 August 2013

कहीं तो कोई सीमा होगी..


खुशियाँ मिले पर नाख़ुश,
खुशियों का स्त्रोत्र ढूढते हो,

ज़िन्दगी मिले तो जीने का
रहस्य खोजने में जुट जाते हो,

प्यार पाकर खोने के डर से
मुट्ठी में ज़ोर से जकड लेते हो,

रिश्तो को पाकर भी असंतुष्ट
नए रिश्ते जोड़ने चल देते हो,

ज्ञान मिले तो बांटने से ज्यादा
अपने पास छुपाना चाहते हो,

विरासत में मिली धरोहर को
ना संजो अय्याशी करते हो,

परिवार से दूर जाकर उड़ने को
एक नया आकाश खोजते हो,

और पाने की लालसा में जो है
उसे भी अनदेखा करते हो,

मुट्ठी में दबी रेत सा धीरे-धीरे
सब हाथ से छूट जाने देते हो,

मूक बने खुद से सब कुछ
दूर होता देखते जाते हो,

कुछ ऐसा है इस जीवन में
जिसे पाकर संतोष रखते हो?

अब कहीं तो कोई सीमा होगी
जिसे जानते और मानते हो?

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