रावण उवाच..
हर बार मैं जलता हूँ,
हर बार मैं बचता हूँ।सदियों का क़र्ज़ है ये,
जल्दी ना चुकता होगा।
अयोध्या में तू जन्मा,
बनवास स्वीकार किया।
न तुझ से बैर था मेरा,
न ही कोई पहचान थी।
फिर भी बहन का अपमान,
ये था मेरे क्रोध का आह्वान।
हनुमान भेज लंका जलवाई,
रामसेतु बनाकर की चढ़ाई।
लंका आने का साहस किया,
विभीषण मेरे विरुद्ध किया।
कष्ट तुझे विरह का देना था,
बदला मुझे बहन का लेना था।
सीता अगर भार्या थी तेरी,
श्रुप्नखा भी बहिन थी मेरी।
हर युग में मुझसे युद्ध किया,
हर बार तूने मेरा वध किया।
हर बार मुझसे अनजान हुआ,
पर आज मैं तेरा मेहमान हुआ।
कुछ कोशिश तेरी रही अधूरी,
कुछ कोशिश न मैंने की पूरी।
और कुछ बस इस तरह से,
मैं जिंदा रहा हूँ सदियों से ।
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