तू तो मौत का सामन है..
जीवन तेरा अपमान है
तू मौत का सामान है
नियति में मरना लिखा है
क्यूंकि तू जन्मा इंसान है
कभी खाके, कभी भूख से
कभी जागकर,कभी सोकर
कभी बीमारी और रोग से
कभी प्रकृति के प्रकोप से
कभी ज्ञान के सागर में
कभी अज्ञानता में डूब के
कभी धर्म के आडंबर से
कभी अधर्म के समुंदर मे
कभी प्रभु के तीसरे नेत्र से
कभी इंसान रूपी दैत्य से
कभी मुलायम बिछौनों पे
कभी ठन्डे मुर्दा से फर्श पे
कभी अमीरी के घमंड से
कभी घोर गरीबी के दंड से
कभी यौवन के उन्माद से
कभी मदिर के प्रसाद से
कभी दुश्मनों के वार से
कभी परिवार के प्रतिकार से
कभी समाज के भय से
कभी खुद के निर्णय से
कभी ऊपर की लालसा से
कभी नीचे गिर के धडाम से
कभी अपनों के हाथों से
कभी परायों के पापों से
कभी ऊँचे उड़ते आकाश में
कभी गहरे डूबते पाताल में
कभी भोजन के कुपोषण से
कभी सामंतवादी शोषण से
कभी बाबाओं के पाखण्ड से
कभी अपने बचपन उद्दण्ड से
कभी प्रियतम के प्यार से
कभी दुष्ट के बलात्कार से
कभी शादी के आयोजन से
कभी दहेज़ के प्रलोभन से
कभी संस्कारों के दोष से
कभी जातिवालो के क्रोध से
कभी सरकार की नीति से
कभी नेता की राजनीति से
कभी टैक्स की बेचारगी से
कभी न्याय की लाचारी से
जनम लेते भविष्य तो तय है
इन्सान बन जीने का भय है।
मृत्यु तेरी बिलकुल निश्चित है
यही जन्म लेने का प्राश्चित है।
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