Monday 3 November 2014

बचपन..



सब कहते हैं ये नटखट बचपन
सपनो की रंगबिरंगी दुनिया है।

परियों की दंतकथाओं सा रोचक
शायद पंचतन्त्र सा ज्ञानवर्धक है।

काले बदलो का नमकीन पानी या
भीगी मिटटी की सौंधी खुशबु है।

साफ़ शीशे जैसी अपारदर्शी या
पिकासो के चित्र समान उलझा है।

हरी इमली सा खट्टा या फिर
कुरकुरे की तरह टेड़ा मेड़ा है।

हाथों से फिसलती हुई रेत या
हवा में तैरता हल्का नन्हा पंख है।

बंसी की मीठी धुन में मग्न या
कोयल की कुक सा मधुर है।

पहाड़ों की वादियों में गूंजता या
हरी घास का मखमली आसन है।

पंछी की मस्त उड़ान भरता या
मोर के फैले पंखों का नृत्य है।

नदिया का कलकल स्वर या
बहते झरने का निश्छल जल है।

हाथी की चाल की तरह मदमस्त
या शेर की शक्तिशाली दहाड़ है।

अभी यहाँ दिखाई देता है बचपन
पलक झपकते नज़रों से ओझल है।

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