Thursday 17 October 2013

बेसाख्ता..

तेरे घर में जो मिलता था
कभी, वो मेरा प्यार  था,
आज तू है, तेरा घर भी है
लेकिन मेरा प्यार कहाँ है?

आँख का आंसू भी
कमाल कर गया,
मेरे आईने को और
धुंधला कर गया।

हर इक आंसू मेरा जो
इस आँख से बहता है,
तु न देखे तो पानी का
बस इक कतरा सा है।

काश कोई तो समझे
कि चुप रहने वालों
की जुबां भी होती है,
उनके सीने में दिल है
जिसमें दर्द भी होता है।

जिनके प्यार की
बरसात में
भीगे थे कभी,
उनके चेहरे
को भी देखे
सदियाँ बीत गयी हैं।

जब से तू बेपरवाह
हुआ है मेरे रिश्ते से,
अपना घर भी अब
मुझे मकान लगता है।

खंडहर को देख कर जो
इमारत का पता लगाते हो,
ज़रा मेरे दिल में झांक कर
टूटे रिश्तों को ही समेट लो।

वो जो सपना हमने
मिल कर देखा था
थोडा तेरा पर बहुत
सारा मेरा भी था।

Sunday 13 October 2013

रावण उवाच..


हर बार मैं जलता हूँ,
हर बार मैं बचता हूँ।

सदियों का क़र्ज़ है ये,
जल्दी ना चुकता होगा।

अयोध्या में तू जन्मा,
बनवास स्वीकार किया।

न तुझ से बैर था मेरा,
न ही कोई पहचान थी।

फिर भी बहन का अपमान,
ये था मेरे क्रोध का आह्वान।

हनुमान भेज लंका जलवाई,
रामसेतु बनाकर की चढ़ाई।

लंका आने का साहस किया,
विभीषण मेरे विरुद्ध किया।

कष्ट तुझे विरह का देना था,
बदला मुझे बहन का लेना था।

सीता अगर भार्या थी तेरी,
श्रुप्नखा भी बहिन थी मेरी।

हर युग में मुझसे युद्ध किया,
हर बार तूने मेरा वध किया।

हर बार मुझसे अनजान हुआ,
पर आज मैं तेरा मेहमान हुआ।

कुछ कोशिश तेरी रही अधूरी,
कुछ कोशिश न मैंने की पूरी।

और कुछ बस इस तरह से,
मैं जिंदा रहा हूँ सदियों से ।

Sunday 6 October 2013

बचपन की रामलीला...


याद है मुझे अपने बचपन की वह रामलीला,
जिसे देखने का जोश कभी न होता था ढीला।

इतनी भीड़भाड़ मगर हर बार देखनी होती थी,
राम, लक्ष्मण और सीता के त्याग की  गाथा।

घर से कुर्सी ले जाना वहां बैठ मूंगफलियां खाना,
खूब हंसना, मस्ती करना और रात भर जागना ।

राम और सीता को देखकर दोनों हाथ जोड़ना,
हनुमान के आने पर तालियाँ बजा शोर करना।

रावण की भयानक हंसी कितना हमें डराती थी,
सीता की व्यथा तो मुझे हर बार रुला जाती थी।

केकैयी को देखने से मन में नफरत हो जाती थी,
मंथरा को हर बार हमारी एक गाली तो पड़ती थी।

राम का बाण चला राक्षस रावण संग युद्ध करना,
अंत में रावण को मार अपनी सीता को घर लाना।

भारत मिलाप देख कर मन में नए सपने संजोना,
मिलजुल के रहने का पाठ हमेशा चाव से सीखना।

रामलीला का हर एक संवाद कंठस्थ होता था,
फिर भी हर बार देख भरपूर आनंद मिलता था।

बचपन की क्या कहें, उसकी हर बात निराली थी,
तभी हमने बचपन की हर याद मन में बसा ली थी।

आज सोचो तो वह सब एक सपना सा लगता है,
वही बचपन की रामलीला देखने को मन करता है।