विभाजन की टीस..
स्वतंत्रता दिवस आते ही लोगों में देशभक्ति की भावना जोर मारने लगती है। जन मानस अंग्रेजों की गुलामी से मिली मुक्ति पर भाव विभोर हो जाता है। हर कोई मुश्किल से मिली आज़ादी के रंग में सराबोर हो जाता है।
लेकिन आज़ादी के रंग के साथ मिला हमें एक रंग और भी है जिसका ज़िक्र सिर्फ वही करते हैं जिनका इससे वास्ता है। ये रंग उन लोगों का दुःख है जिन्होंने गुलाल के रंग के साथ विभाजन के समय खून का रंग भी देखा है। अपना घर-बाहर खोया और कितने अपनों को अपने सामने मौत के मुंह में जाते भी देखा है।
15 अगस्त 1947 का वो दिन जब एक विराट देश दो टुकड़ों में बाँट दिया गया। अपनों को पराया कर दिया। घर परिवार बाँट दिया।
उस एक दिन में बदली थी ना जाने कितने लाखों लोगों की तक़दीर। देश बदल गया। घर पीछे छूट गया। अपने ही देश में लोग शरणार्थी हो गए। राजा से रंक बन गए। साहूकार जैसे लोग दूसरों पर आश्रित हो गए। एक एक दाने को तरस गए।
सालों लगे अपनी ज़िन्दगी को समेटने में। जवानी बीत गए। बचपन मानों सपनों में खो गया। परियों की कहानी सा हो गया। पैदा हुए थे जिस मिटटी में उसे छूने को भी तरस गए। अपने बिछड़े वतन की हवा में सांस लेनी भी कभी नसीब नहीं हुई।
थोडा सा समान समेट कर अपने घर से निकले थे जो इस उम्मीद पर के एक दिन अपने घर लौट जायेंगे, वापिस वही सम्मान पाएंगे। कभी उस मिटटी की खुशबु भी ना सूंघ सके, उस ज़िन्दगी की एक झलक भी न देख सके।
अपनी दरो-दीवार को तरसते, मन में टीस लिए जहाँ जगह मिली, वहीँ बस गए। नए आशियाने बनाये। रोज़गार ढूंढें। उसी मिटटी के होकर रह गए। बरसों जीवन संघर्ष में बीत गया। उस पीढ़ी ने मानो सुख को कल्पना में ही महसूस किया।
एक नयी दुनिया में अपनी पहचान बनायीं.. फिर खो गए। 😢
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