महिला दिवस..
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जहाँ नारी का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता निवास करते हैं।
महिलाएं समाज का वो आधा हिस्सा है जो बाकी आधे को पूरा करता है। इसीलिए
महिलाओं की शिक्षा, सुख दुःख और
दुर्दशा का हमारे समाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। महिलाएं सदियों से समाज को बदलने का प्रयत्न कर रही है। घर में माँ, स्कूल में अध्यापिका, अस्पताल में डॉक्टर और वकील बनकर अपने कर्तव्य का पालन करती है। हर क्षेत्र में पुरुष के साथ मिलकर अपना योगदान देती है।अपने परिवार के लिए हर नदी, पर्वत और रास्ते में आती हर एक बाधा को पार कर के अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है। जरुरत पड़े तो देश की सेवा के लिए
भी हर मोर्चे पर डट जाती है। चाहे पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर काम करती है, लेकिन अपने बच्चो की गुरु बनकर उन्हें ज्ञान और संस्कार का अमूल्य खज़ाना भी देती है। अन्नपूर्णा बनकर परिवार का भरण-पोषण करती है। महिला अगर पलने को झूलाती है तो समय आने पर सत्ता को भी हिला सकती है।
स्वतंत्रता संग्राम में भी महिलाओं का योगदान सराहनीय है।अब तो महिलाएं सोशल मीडिया पर भी आ गयी हैं।राजनीती में तो महिलाओं की पैंठ अच्छी है। एक साथ कई हिस्सों में बंटकर भी हमेशा निडरता सेडटी रहती है। कभी भी हिम्मत नहीं हारती है। हर कार्य को उतनी ही कुशलता से करती है, जितनी की उससे आशा की जाती है।फिर भी हर समय हंसती मुस्कुराती ही दिखती है। निस्वार्थ प्रेम और सेवा में तो नारी का कोई सानी ही नहीं है।
इक नारी से दुखी रहे दूसरी नारी बेचारी,
फिर भी नारी बिन अधूरी ये दुनिया सारी।
मर्द हो या न हो, साथ दे या ना दे, उसे तो बदलाव के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। घर हो या बाहर पुरुषों के अत्याचार का सामना करना पड़ता है। अपमान भी सहना पड़ता है। घर पर भी और बाहर जाकर भी अपनी सुरक्षा का जिम्मा भी खुद ही लेना पड़ता है। नारी को कमजोर मानने वाले पुरुष दरअसल अपनी कमजोरी को नकारते है। पुरुष प्रधान समाज से आप कोई अलग उम्मीद रख भी कैसे सकते हैं ?
फिर भी नारी बिन अधूरी ये दुनिया सारी।
मर्द हो या न हो, साथ दे या ना दे, उसे तो बदलाव के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। घर हो या बाहर पुरुषों के अत्याचार का सामना करना पड़ता है। अपमान भी सहना पड़ता है। घर पर भी और बाहर जाकर भी अपनी सुरक्षा का जिम्मा भी खुद ही लेना पड़ता है। नारी को कमजोर मानने वाले पुरुष दरअसल अपनी कमजोरी को नकारते है। पुरुष प्रधान समाज से आप कोई अलग उम्मीद रख भी कैसे सकते हैं ?