Saturday, 15 September 2012

माँ के साथ बिताया हर एक पल बहुत याद आता है...


पहली बार कुछ लिखने की सोची है। पहले तो समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं? फिर मन ने कहा माँ से बेहतर और क्या हो सकता है? तो आज सबसे पहले माँ की ही बात ही करती हूँ। वैसे भी 'कोई भी नया काम करो तो भगवान का नाम लेना जरुरी होता है।'
 "कहते हैं, कि भगवान सब जगह नहीं हो सकते थे,      इसीलिए उन्होंने माँ बनायी"
अपने जीवन की रील को कभी उल्टा और कभी सीधा घुमाती हूँ, तो बीते हुए सभी दिन एक ही क्षण में चित्र बनकर आँखों के आगे आ जाते हैं। वे बचपन के निश्छल दिन जब माँ अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाती थी। अगर डाँटती थी, तो पुचकारती भी तो वही थीं। माँ गुस्सा होती तो हमेशा कहती थी कि जब खुद माँ बनोगी तो जानोगी, क्या होता है माँ होना और बच्चे पालना??
आज जब माँ नहीं है, तो सब याद आता है। हर बात मस्तिष्क में हमेशा कौंध जाती है। माँ का लाड-प्यार और दुत्कार। आज "माँ तो नहीं है, लेकिन माँ के खाने कि खुशबु मेरी इन सांसो में अब भी है।" 
माँ ज्यादा घर से बाहर नहीं जाती थी। उनकी ज्यादा सहेलियां भी नहीं थी। कुछ मौसेरी बहनें ही उनकी मित्र थीं। सरल और बडी धार्मिक थीं। उन्हें हर तरह की पुस्तके पड़ने का बेहद शोंक था। गुणी व ज्ञानी भी कमाल की थी।माँ केवल मेरी माँ ही नहीं बल्कि मेरी अच्छी सखी भी थी। उनसे बहुत कुछ क्या, मैंने तो सब कुछ उन्ही से सीखा है।
 "माँ की कही हर एक बात इस दिल में उनकी याद की तरह बसी हुई है"
कहते है कि बेटीयाँ माँ की छाया होती है। मैं शायद उनकी छाया का कुछ अंश मात्र ही हूँ। एक दोस्त की तरह घंटो बाते करना। अपनी हर छोटी-बड़ी बात उन्हें बताना। अपना सुख -दुःख उनके साथ बांटना।मेरे परेशान होने पर माँ का प्यार से समझाना। मेरी बहनों के संग मिलकर मुझे चिड़ाना। सब कुछ तो याद आता है।
"माँ के साथ बिताया हर एक पल बहुत याद आता है,। बेहद सताता है। आँखों में नमी भर देता है"
  अंत में यही प्रार्थना करुँगी कि "हे भगवान ! कभी     किसी बेटी से उसकी माँ दूर न हो"..